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Panghat
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Sarvesh Tripathi
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प्रस्तुत काव्य संग्रह में कवि की वे कवितायें संकलित हैं जो 24 से 27 की उम्र के बीच रची गई हैं। जैसे एक "पनघट" किसी गांव का सांस्कृतिक-मिलन-केंद्र होता है वैसे ही यह पुस्तक विभिन्न भावों,विभिन्न रंगों व विचारो की मिलन बिंदु है। इसमें एक ओर जनता की पुकार,आक्रोश और क्रांति के स्वर हैं तो दूसरी ओर प्राचीन परंपरा के लोकोपयोगी रूप को बचाये रखने का आग्रह,उसका गौरवगान तथा उसकी मनोरम झाँकी भी है। प्रकृति एवं मानवजीवन के गहरे और दिलकश सौन्दर्यबोध का चहकता हुआ स्वर इस काव्यसंग्रह की विशेषता है। जहाँ एक ओर सरल भाषा और ठेठ के सहज सम्मेलन से उपजी कोमल और सहज कवितायें हैं वहीं कहीं कहीं परिनिष्ठित और परिमार्जित भाषा की गहन अर्थबोध वाली दार्शनिक कवितायें हैं,पर उनमें भी रसमयता हर जगह व्याप्त है। करुणा,दया,आशावादिता,नारी के प्रति सम्मान का भाव इस कविता संग्रह में सर्वत्र व्याप्त हैं। यह कवि एक ही समय में परम्परावादी भी है और क्रांतिधर भी,एक मस्ताना आशिक़ है तो विवेकवान दर्शनशास्त्री भी। कुल मिलाकर यह पुस्तकरूपी "पनघट" ऐसा पनघट है जहाँ की तरलता से जीवन का हर पक्ष सक्रिय और रसमयता को प्राप्त कर रहा है।
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